गर्भावस्था के दौरान मानसिक विकार: कारण, लक्षण, उपचार और घरेलू उपाय

 गर्भावस्था हर महिला के जीवन का सबसे खूबसूरत और संवेदनशील चरण माना जाता है। लेकिन इस दौरान महिला न केवल शारीरिक रूप से, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी कई बदलावों से गुजरती है। अक्सर ये बदलाव सामान्य होते हैं, लेकिन कभी-कभी ये गंभीर मानसिक विकार (Mental Disorders During Pregnancy) का रूप ले लेते हैं।

यदि इन्हें समय पर पहचानकर सही उपचार न किया जाए, तो यह माँ और शिशु दोनों के लिए नुकसानदायक हो सकते हैं।

गर्भावस्था के दौरान आम मानसिक विकार

1. अवसाद (Depression)

  • उदासी और निराशा की भावना

  • किसी भी काम में आनंद न मिलना

  • भूख और नींद में गड़बड़ी

  • आत्मग्लानि या बेकार होने की भावना

2. चिंता विकार (Anxiety Disorders)

  • अत्यधिक घबराहट और बेचैनी

  • पसीना आना और धड़कन तेज होना

  • बच्चे और प्रसव से जुड़ी लगातार चिंता

3. मूड डिसऑर्डर और मूड स्विंग्स

  • कभी गुस्सा तो कभी रोना

  • छोटी-सी बात पर चिड़चिड़ापन

  • भावनाओं पर नियंत्रण न रहना

4. ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर (OCD)

  • बार-बार नकारात्मक विचार आना

  • बार-बार हाथ धोना या सफाई करना

  • किसी काम को दोहराते रहना

5. पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD)

  • पहले हुए गर्भपात या कठिन प्रसव का डर

  • बुरे सपने और फ्लैशबैक

  • प्रसव को लेकर लगातार भय

मानसिक विकारों के मुख्य कारण

  • हार्मोनल असंतुलन

  • सामाजिक और पारिवारिक दबाव

  • शारीरिक परेशानी और दर्द

  • रिश्तों में तनाव

  • पहले हुए गर्भपात/कठिन प्रसव का अनुभव

  • आर्थिक दबाव या भविष्य की चिंता

गर्भावस्था में मानसिक विकार के लक्षण

  • नींद और भूख में बदलाव

  • लगातार चिंता, तनाव या उदासी

  • काम में रुचि न होना

  • दूसरों से दूरी बनाना

  • आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार (गंभीर स्थिति)

उपचार (Treatment)

1. मनोचिकित्सकीय परामर्श (Psychological Counseling)

  • कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (CBT): नकारात्मक विचारों को बदलने में मदद करती है।

(कॉग्निटिव बिहेवियर थेरेपी (CBT) - यह थेरेपी नकारात्मक विचारों को पहचानने और उन्हें सकारात्मक सोच में बदलने में मदद करती है। गर्भावस्था में कई बार महिलाओं को डर और चिंता सताती है, जैसे “मैं माँ बनने लायक नहीं हूँ” या “बच्चा सुरक्षित नहीं रहेगा।” CBT में काउंसलर बातचीत के ज़रिए यह समझाता है कि ऐसे विचार केवल चिंता का हिस्सा हैं, सच्चाई नहीं। इससे महिला का आत्मविश्वास बढ़ता है, तनाव कम होता है और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर रहता है।)

  • इंटरपर्सनल थेरेपी (IPT): रिश्तों और सामाजिक समर्थन को मजबूत करने पर केंद्रित।

(इंटरपर्सनल थेरेपी (IPT) - यह थेरेपी रिश्तों और सामाजिक समर्थन पर केंद्रित होती है। गर्भावस्था के दौरान महिला को अगर अकेलापन या परिवार से सहयोग की कमी महसूस हो, तो IPT बहुत उपयोगी साबित होती है। इसमें महिला को सिखाया जाता है कि वह अपनी भावनाएँ परिवार और पति के साथ कैसे साझा करे और मदद कैसे मांगे। इससे रिश्ते मजबूत होते हैं, भावनात्मक सहारा मिलता है और गर्भावस्था का अनुभव सकारात्मक बनता है।)

2. दवाएँ (Medicines – केवल डॉक्टर की देखरेख में)

गर्भावस्था में दवाओं का उपयोग बहुत सावधानी से किया जाता है क्योंकि ये बच्चे पर असर डाल सकती हैं। केवल योग्य Psychiatrist/Gynecologist की सलाह से ही दवा लेनी चाहिए।

  • एंटीडिप्रेसेंट (SSRIs जैसे – Sertraline, Fluoxetine) → अवसाद और चिंता में।

  • एंटी-एंग्जायटी दवाएँ → बहुत ही सीमित और आवश्यक स्थिति में।

  • सप्लीमेंट्स → फोलिक एसिड, आयरन, ओमेगा-3 फैटी एसिड मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं।

3. सपोर्ट सिस्टम

  • परिवार का भावनात्मक सहयोग

  • साथी (Husband) का सहयोग और समझ

  • डॉक्टर से नियमित मुलाकात

घरेलू उपाय और सुझाव

1. आहार (Diet)

  • हरी पत्तेदार सब्जियाँ, फल, दूध और दालें खाएँ।

  • ओमेगा-3 युक्त आहार (अलसी, अखरोट, मछली का तेल – डॉक्टर की सलाह से) लें।

  • कैफीन और जंक फूड से बचें।

2. योग और व्यायाम

  • प्रेगनेंसी योग और प्राणायाम (अनुलोम-विलोम, दीप ब्रीदिंग) करें।

  • हल्की सैर (Walking) मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से लाभकारी है।

3. तनाव प्रबंधन

  • ध्यान (Meditation) और माइंडफुलनेस अपनाएँ।

  • पसंदीदा संगीत सुनें या पढ़ाई/चित्रकला जैसे शौक पूरे करें।

  • खुद को सकारात्मक माहौल में रखें।

4. भावनात्मक सहयोग

  • अपनी भावनाएँ परिवार और दोस्तों से साझा करें।

  • पति/साथी के साथ खुलकर बातचीत करें।

  • यदि कोई समस्या है तो उसे मन में न दबाएँ।

5. नींद और आराम

  • रोज़ाना 7–8 घंटे की नींद लें।

  • दिन में छोटे-छोटे ब्रेक लेकर आराम करें।

कब डॉक्टर से तुरंत संपर्क करें?

  • जब उदासी या चिंता 2 सप्ताह से अधिक समय तक बनी रहे।

  • जब आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार आएँ।

  • जब भूख और नींद पर गंभीर असर पड़े।

  • जब बच्चे या प्रसव को लेकर अत्यधिक डर और तनाव महसूस हो।

निष्कर्ष

गर्भावस्था का समय जितना खूबसूरत है, उतना ही चुनौतीपूर्ण भी है। इस दौरान मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना शारीरिक स्वास्थ्य जितना ही महत्वपूर्ण है। समय पर परामर्श, उचित दवाएँ (डॉक्टर की देखरेख में), जीवनशैली में सुधार और घरेलू उपाय मिलकर माँ और शिशु दोनों को स्वस्थ रखते हैं।

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